1. चैत्र प्रतिपदा : कश्मीरी नववर्ष की शुरुआत भी चैत्रमाह से होती है। कश्मीर में नवरेह नव चंद्रवर्ष के रूप में मनाया जाता है जो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष का प्रथम दिन होता है। नवरेह शब्द संस्कृत शब्द नववर्ष से बना है। कश्मीर में नवदुर्गा पूजन भी इसी दिन से आरम्भ हो जाता है।
2. सप्तर्षि संवत : कश्मीरी संवत की शुरुआत 3076 ईसा पूर्व मानी जाती है। कश्मीरी संवत नवरेह प्राचीन सप्तर्षि संवत पर आधारित है और यह भी इतना ही पुराना है जितना की सप्तऋषि संवत है।
3. नेची पत्री : कश्मीरी हिंदुओं के कुलगुरु नया कश्मीरी पंचांग जिसे नेची पत्री कहते हैं, प्रदान करता है। एक अलंकृत पत्रावली, क्रीच प्रच जिसमें देवी शारिका का चित्र बना होता है, वह भी प्रदान करता है।
4. विचर नाक झरना : नवरेह उत्साह, प्रकाश और रंगों का त्योहार है। इस दिन कश्मीरी पंडित पवित्र विचर नाग के झरने की यात्रा करते हैं तथा इसमें पवित्र स्नानकर मलिनता का त्याग करते हैं। इसके पश्चात् प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
5. पौराणिक कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, देवी मां शारिका का निवास शारिका पर्वत (हरि पर्वत) पर था जहां प्रसिद्ध सप्तऋषि एकत्रित होते थे। प्रथम चैत्र के शुभ दिन पर, जैसे ही सूर्य की पहली किरण चक्रेश्वरी पर पड़ी और उन्हें सम्मान दिया गया। ज्योतिषियों के लिए यह क्षण नववर्ष और सप्तर्षि युग की शुरुआत माना जाता है।